जिंदगी अनमोल है


 
" रेनू ! मैं तुमको और उदित दोनों को जिंदा कर लूँगा ..फिर हम अमर हो जायेंगे.... रेनू....."
जी हाँ रेनू ! रेनू मेरी धर्मपत्नी का नाम है ...और उदित मेरा 6 साल का बेटा है .....
जिंदगी में एक आम इंसान को क्या चाहिए... एक अच्छा परिवार , एक अच्छा घर ..एक अच्छी जॉब ..एक सुंदर सी पत्नी और  मुँहमाँगी औलाद ।

सब है मेरे पास ... सब कुछ ...आई एम दी किंग ...आई एम दी किंग ऑफ यूनिवर्स !
मैं सिद्धार्थ देशराज ...पेशे से एक प्रोफेसर ...प्रोफेसर ऑफ साइकोलॉजी....लेकिन घर में हमेशा नेचुरल थ्योरी ऑफ लाईफ के ऑर्बिट में ही रहता हूँ ....

मतलब मैं अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को मिक्स नही होने देता....

मैं वैसा ही इंसान हूँ ..जैसे आप हैं ...लेकिन फिर भी मैं आपसे स्पेसिफिक हूँ...मीन्स कैसे ...?
तो मैं मोर पज़ेसिव हूँ अपनी फैमली के लिए ...मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी सिर्फ मेरा परिवार है ... बाकि न मेरा कोई गहरा दोस्त है और न मैं ये दोस्ती -वोस्ती का डॉगी पालता हूँ...



मैं कभी नही चाहता कि कोई भी दूसरा इंसान मेरी जिंदगी में इंट्री करे ...घर तो दूर की बात है ....
हाँलाकि रेनू इसमें सहज नही ...लेकिन वो भी धीरे-धीरे ग्लान्स हैबीचुअल हो रही है .....

वन डे~~~ जब हम वीकेंड सन्डे पर पिकनिक को जा रहे थे ...मैं घर से लगभग 5 किमी. कार ड्राइव कर चुका था कि तभी-

" व्हाट हैपन सिद्धार्थ ..? गाड़ी क्यों रोक दी ..?"

" रेनू मुझे लगता है ...मैं  अपनी स्टडी टेबल पर जली हुई सिगरेट छोड़ आया हूँ ...?"

" रिलेक्स सिद्धार्थ ..वो ऐश ट्रे में होगी ...अपने आप बुझ जाएगी !"

" और नही हुई ऐश ट्रे में तो ...मेरे कागजात वहीं बिखरे हैं ...आग लग सकती है रेनू "

मैंने आनन-फानन में कार बैक की ओर सीधे अपने घर के आगे ब्रेक लगाया ...

घर का लॉक अनलॉक किया और अपने स्टडी रूम में जाकर देखा ...कोई भी सिगरेट या ऐश ट्रे वहाँ नही थी ...बल्कि वो वहीं थी जहाँ उसे होना चाहिए था...और वो जगह बिल्कुल सेफ थी ...तभी पीछे से रेनू की आवाज सुनाई दी -

" कभी -कभी मुझे लगता है सिद्धार्थ की तुम ..एक पैरानॉर्मल ऑर्थोक्स पेशेंट हो '"


" नो डार्लिंग ! मुझे याद है मैंने सिगरेट यहीं पी थी ..पता नही ये सब ..."

बात आई- गई हो गई ..और फिर वन डे इन क्लास रूम -

" डू यू नो स्टूडेंट्स .... लाइफ़ इज़ जस्ट लाईक अ कैंडिल ..तुम्हे लगता है वो जल रही है ...वो मर रही है ...लेकिन कभी देखो वो पिघल कर फिर स्टोर हो रही है नेक्स्ट टाइम जलने के लिए "
लेक्चर फिनिश हुआ... और मैं स्टाफ रूम की ओर बढ़ने लगा -

" सर ..सर ..आई एम कुणाल ..कुणाल हलधर .... सर आई एम इम्प्रेस्ड योर लेक्चर ..इन्फेक्ट योर ऑल लेक्चर्स...सर आई एम योर बिग फैन ...कैन यू ..."

वो कुछ बोलता लेकिन इससे पहले मैं बोल उठा -

" सॉरी डियर कुणाल मैं घर पर कोई ट्यूशन नही देता ..हैव ए गुड डे "

और इतना कहकर मैं आगे बढ़ा  ही था कि तभी रुक गया ...और पीछे पलटा ...


" हे कुणाल ..कम हेयर .."

कुणाल मेरे पास दौड़ कर आया ..

"  आई वांट वन फेवर ..गो फास्ट ...शायद मैं अपना फोन क्लास रूम में भूल आया हूँ..प्लीज गो फास्ट"

कुणाल ने दौड़ लगा दी ...और वो 7 मिनट बाद वापस लौटा...

" सअअ ..सर ..क्लास रूम में नही है सर ..शायद कोई ले गया "

" व्हाट दी हेल.. उसमें मेरी बीवी की फोटोज थी ...नाऊ व्हाट टू डू "

" सर आपकी पॉकेट.. यस सर आपकी पॉकेट में है फोन "

मैंने अपने पेंट की पॉकेट में देखा फोन वहीं था ...मैं रिलेक्स हुआ .... 

" थैंक्स ..कुणाल ...तुम कल से ठीक पांच बजे मेरे घर आ सकते हो "

" ओह्ह थैंक्स सर ..थैंक्यू वेरी मच "

कुणाल घर आने लगा ..बहुत शरीफ लड़का था ..एक बड़ा साइकोलॉजिस्ट बनना चाहता था ...सब ठीक चल रहा था ...लेकिन मैंने देखा उसके आने से रेनू में एक अजीब उत्साह दिखाई दे रहा था ..मैं देख रहा था कि रेनू स्टडी रूम के बहुत से चक्कर किसी न किसी बहाने मारने लगी थी ।।।।।।
और एक दिन जब रेनू ने उसको जूस ऑफर किया तो रेनू और कुणाल के हाथों का स्पर्श हुआ और दोनों के चेहरे पर मुस्कान खेलने लगी...



मैं सीधे कुणाल को घर आने के लिए मना नही कर सकता था क्यूँकि मेरे पास कोई ठोस वजह नही थी .....

लेकिन रेनू और कुणाल की नजदीकियां आगे बढ़ने लगी थी ...एक दिन जब क्लास में मैंने कुणाल को नही पाया ...

तो लेक्चर छोड़कर सीधे मैंने कार को घर की ओर दौड़ा दिया ...डोर बेल नही दी ..बल्कि अपनी सेकंड की से डोर लॉक अनलॉक किया ....

रेनू बैडरूम में थी मैं सीधे अंदर घुसा -

" त ..त ..तुम ..इस वक्त ..डोर बेल भी नही दी ..आर यू ऑल राइट सिद्धार्थ ..?"

लेकिन मेरी नजर उस खिड़की पर थी जिसके कपाट अभी भी कांप रहे थे ...

मुझे पूरा शक हो चुका ...या मेरा शक यकीन में बदल गया था कि कुणाल मेरी अनुपस्थिति में रेनू से मिलता है ..... और अपने शक और अधिक पुख्ता करने  के लिए मैंने घर के प्रत्येक कमरे में सी. सी. टी. वी कैमराज लगा दिए ..

लेकिन कुछ भी हासिल नही हुआ ..


एक शाम -

" कुणाल आई थिंक तुम्हारा कोर्स कम्प्लीट हो चुका है ..अब तुम्हे यहाँ आने की कोई जरूरत नही!"
कुणाल कुछ रियेक्ट करता इससे पहले ही रेनू बोल पड़ी -

" क्या हुआ सिद्धार्थ अच्छा तो है कि कुणाल शाम हो आता है ..इसी बहाने उदित को भी कम्पनी मिल जाती है "

मैं कुछ बोलता तभी उदित बोल पड़ा ~

" यस पापा ..आई लव कुणाल अंकल ...प्लीज पापा कुणाल अंकल को रोज आने दो न "

स्पष्ट हो चुका था कि कुणाल का जादू रेनू और कुणाल पर सर चढ़कर बोलने लगा था.... और बोलेगा भी क्यों नही रेनू और कुणाल की ऐज में कुछ 7 या 8 साल का डिफरेंस था जबकि मेरी और रेनू की ऐज में पूरे 18 साल का फासला था ....

लेकिन मैं अपने घर को कुणाल से मुक्त करवाना चाहता था ...कुणाल बहुत चतुर था ..वो मुझे कोई मौका नही देना चाहता था ..लेकिन मैं चतुराई में उसका बाप था ...

मुझे कुणाल को रास्ते से हटाना था ...क्यूँकि अगर वो जिंदा रहा तो कहीं न कहीं से मेरी हँसती-खेलती जिंदगी में इंट्री कर सकता था ...

मैंने रात काली की अपनी स्टडी टेबल पर ...और मुझे मिली री बाउंस पैरानॉर्मल थ्योरी ..इट्स मीन्स किसी को मारकर उसे जिंदा करना ....इस प्रकार से जिंदा इंसान आपका सेवक या दास बन सकता है ...मनोविज्ञान इस थ्योरी को झुठलाता है ।।

लेकिन ऑर्थोडॉक्स इल्लुमिनाटी में ये पॉसिबल है ....

उस शाम जब कुणाल मेरे घर आया ...तो रेनू हम दोनों के लिए कॉफी लेकर आई ...मैंने किसी बहाने से कुणाल को बाहर अपनी कार से बुक लेने भेजा जो प्लान के एक्रोडिंग मैंने सीट पर छोड़ दी थी ...
कुणाल के जाते ही मैंने उसकी कॉफी में साइनाइड लिक्विड डाल दिया ...और आने के बाद कुछ देर में कुणाल ने जैसे ही कॉफी की शिप ली ..ऑन दी स्पॉट वो मर गया ....

मैं खुशी से ठहाका लगाने लगा तभी रेनू और उदित दौड़ के मेरी तरफ आये ...

" ये ..ये ..ये क्या हुआ कुणाल को ?"

" डार्लिंग सॉरी अब तुम दोनों की प्रेम कहानी यहीं पर खत्म होती है ..."

" क्या बकवास कर रहे हो सिद्धार्थ ..?"

" सब जानता हूँ मैं ...तुम और उदित दोनों मुझसे ज्यादा इसे प्यार करते हो ...तो ठीक है मैं तुम दोनों को भी इसी के पास भेज देता हूँ "

रेनू हड़बड़ा कर उदित का हाथ पकड़ कर भागी और मैं उनके पीछे - वो बैडरूम में घुसकर लॉक लगा ही रही  थी कि मैंने हाथ अंदर डाल कर उसका गला पकड़ लिया-

" रेनू ! मैं तुमको और उदित दोनों को जिंदा कर लूँगा ..फिर हम अमर हो जायेंगे.... रेनू.....डरो मत ..ये मौत नही जिंदगी है ..फिर तुम दोनों सिर्फ मुझे प्यार करोगे ..सिर्फ मुझे "

रेनू की आँखें बाहर आने लगी ..और जुबान ऐंठकर भर्राने लगी ..सिर्फ 10 सेकेंड और उसके बाद उसे इस नीच जीवन से मुक्ति मिल जानी थी ...तभी मेरे सर पर एक वार हुआ और मैंने उसके बाद आँख खोली हॉस्पिटल में ....

तीन दिन बाद मैं पुलिस कस्टडी में चला गया .... और मेरे सामने खड़े थे रेनू और उदित....
मेरे सर पर वार उदित ने किया था और घर पर लगे सी.सी.टीवी. कैमराज के चलते मुझे कुणाल की कॉफी में जहर मिलाते हुए देख लिया गया था ...

ये प्रबल सुबूत था ..मेरे खिलाफ...लेकिन मैं चीखते रहा ..रेनू और कुणाल को पुकारते रहा और दूसरी तरफ -



" रेनू जी ! आपके पति खूनी बाद में पहले एक साइकोलॉजिकल पेशेंट हैं ...इन्हें  ओ.सी .डी है यानि  ऑब्सेसिव कम्पलसिव  डिसऑर्डर ... ये बीमारी हम सब को होती है ...यानि ' वहम ' ... लेकिन ह्यूमन होने के नाते ये नॉर्मल ब्रेन प्रोसेस है .लेकिन जब ये ये बीमारी हमपर हावी होने लगती है तो हम ओ.सी.डी से ग्रस्त हो जाते हैं ....हम अपने वहम को सत्य और दुनिया को मिथ्या मान लेते हैं...हम वहम में जीते हैं..अपने दिमाग में कैरेक्टर जेनरेट करते हैं ..और हमेशा किसी अनहोनी की घटना से भयभीत रहते हैं ...ओ .सी.डी फर्स्ट फेज और थर्ड फेज तक ईलाज से ठीक हो सकती है लेकिन फिर ये इंसान पर हावी हो जाती है ...

आपके पति इसके साथ इल्लुमिनाटी मेम्बर थे ..यानि शैतानी दुनिया के जादू और शक्तियों पर विश्वास करने वाले ...इसलिये ओ.सी.डी के चलते उनका वहम उनका शक बन गया और शक ने सीवियर होकर उन्हें क्रिमिनल बना दिया ..इल्लुमिनाटी चेलेंज करता है कि वो मुर्दों को जीवित कर सकता है... और जीवित सब्जेक्ट्स को वो रोबोट्स में तब्दील कर सकता है ...आपके पति भी यही करने वाले थे ...अफसोस अब वो कभी वापस नही आ सकते ..इसलिये मैं कहता हूँ जीवन मे वहम का खात्मा करो ..बार -बार कमरे में झाड़ू लगाना ..साफ बर्तनों को दुबारा धोना ..बार -बार नहाना ..आदि ..ये प्रारंभिक चरण हैं ...ओ. सी. डी के ...बस वहम से मुँह मोड़ों और जिंदगी को खुशियों से भरो ...क्यूँकि जिंदगी अनमोल है !"

Written by Junaid Pathan

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