फेर गणित का
" छ : छका ..? "
" बत्तीस ! "
और फिर गुरुजी ने मेरे नगाड़ों पर वो ठाप देनी शुरू की .. कि मेरी जिंदगी आज भी उस पर मुजरा करती है !!!!!!
गणित मेरी जिंदगी की पहली और आखरी दुश्मन .... पता नही क्यों बाबू जी चाहते थे कि मैं गणित में गम्भीर सिंह चड्डा नही बल्कि वीर सिंह फड्डा बनकर उनकी छाती बहत्तर करूँ ।।
बहत्तर का फेर आसान नही ... बाबूजी कहते हैं 72 एक हठ साधना है ...ये उन्नति का चरम अंक है ...
बाबूजी 72 का जोड़ -घटाना कर नक्षत्रों के भी अँगुली करते रहते थे ... उनका रॉकेट साइंस कहता था कि गणित के बिना ईश्वर को नही समझा जा सकता.....
ये लो ! अब गणित और ईश्वर का क्या लेना देना ...,बाबूजी का मत था कि ईश्वर ही जीवन में जोड़-घटाना करता है .....वो ही कभी समृद्धि के अंक बढ़ाता है तो कभी आपदा के ....
लेकिन 72 की रट्ट विद्या बाबूजी को 45 में धोखा दे गई ....बाबूजी का ऑफ होना ऐसा था जैसा शून्य की स्पर्श रेखा का उसकी त्रिज्या में घुस जाना .....
उस समय मैं कक्षा 9 में था .... और दीदी 12 का तोड़ पूरा कर अपने ससुराल जा चुकी थी ....
लेकिन 12 तो दूर की कौड़ी थी अभी तो 10 का दम बाकि था ...लेकिन माँ में अब इतना दम नही था कि वो मेरा और अपना बोझ उठा सके ....
बाबूजी ज्योतिषी थे ...पूजा -पाठ ..दान -दक्षिणा से घर की रेल हिला लेते थे ...लेकिन माँ कभी द्वार की दहलीज से पार न जा सकी ...
बाबूजी इसमें भी गणित फिट कर चुके थे... उनका मत था कि यदि माता सीता 90 डिग्री का चाप क्रॉस नही करती तो उन्हें कभी त्यागा न जाता ।।।।।।
जीजाजी बड़े नेम ठुकराल व्यक्ति थे ...मदद के नाम पर वो सिर्फ सांत्वना देते उनका कहना था हरि जाप हर समस्या का एक निदान है ...जबकि वो लक्ष्मी के उपासक थे और सस्ता गल्ला महँगा करके उड़ाते थे ....
मुहल्ले के करीम फुरकान पहलवान ने मेरी गणित उस्तादी सम्हाली और रुस्तम सनद ली कि 7 दिन मैं गणित मेरी महबूबा बन जायेगी ...,उनका कहना था गणित के लिए पहले पहलवानी जरूरी है 7 दिन उनके साथ पहलवानी सीखी...और आठवें दिन वो बोले -
" लपक के दंड लिया करो फिर गणित को दौड़ा -दौड़ा के रौंद सकते हो .."
का घण्टा ! कछु समझ न आया उनका रूहानी चिलम ..कुश्ती बाद ज़िन्दगी की झंड रेल हमेशा आंखों में चलकर नींद ले आती ...
अंकगणित फिर भी महान थी सिर्फ अक्ल के घोड़े ही खोलती थी ...लेकिन रेखागणित ने मुझे गधा कहकर मेरा नव नामकरण किया ....
मास्टर से सदैव सवाल पूछता कि साहब ..दो दूनी ..और आठ नम्मा तो बिजनेस में लगता-फिरता है ...जोड़ घटाना भी जमा कर लियो ..भाग भी पौने के आधे करे ....लेकिन ये ज्या ..कोज्या कहाँ फिट होवे है ..?
दुलत्ती मार के जमीनी प्रभु समझाते कि इसमें अभी रिसर्च चल रही है ...जब आँकड़े जारी होंगे बता देंगे ....
माँ इमोशनल थी .. वो बाबूजी को सिर्फ गणित के नाम से याद रखती थी ...उनका कहना था कि तेरे पिता कछु न छोड़ गये गम नही ...लेकिन गणित उनकी विरासत है और तुझे इसमें झंडे नवाब गाड़ने होंगे ....
माँ गणित का नाम सुनकर गमगीन हो लेती ...और मुझे इस ससुरी ने दो बार हाई स्कूल लूडो के 99 वाले साँप से कटवा कर सीधे 9 में पहुंचा दिया ....
9 नम्बर से आगे कभी अपना राफेल उड़ा ही नही ....तो पिनक में फिर मास्टर से सवाल दागा -
" जब गणित 9 से ज्यादा देती ही नही तो आपने किस आधार पर हमें 9 से 10 में पहुंचा दिया "
मास्टर हेड मास्टर के सम्मुख ले जाकर खड़ा किये और हेड मास्टर बोले -
" नही करते तो का करते ...? बोलो ...बेईमान नही हैं ..ऑफ होने से पहले तुम्हारे पिता हमारी साल भर की ट्यूशन फीस भर गये थे "
बाबूजी बहुत याद आये !लेकिन दो साल फेल होने के कारण स्कूल से निकाल दिए गये ....लेकिन माँ सेंटी थी अभी भी संटी लेकर बोलती कि गणित से दसवीं तो उत्तीर्ण करनी होगी वरना वसीयत कराके अलग कर देगी खुद से !
माँ इमोशन में ज्यादा प्रमोशन कर गयीं ...लेकिन उसकी आँख के आँसू बता रहे थे कि वो मुझसे ज्यादा प्यार बाबूजी से करती है ,।। , और वो चाहती है कि किसी भी कीमत में ..मैं हाई स्कूल पास करूँ वो भी गणित से .. माँ ने दहलीज से कदम बाहर निकाल दिया था ...
मुहल्ले के नागानंद शास्त्री के उपकार के कारण उन्होंने घाट के पास ...प्रसाद -पुष्प की दुकान खोल ली ...अच्छा कतई नही लगता था उसका सुबह से शाम तक यूँ भूखे पेट और गीली आँखें लेकर माँ का सड़क पर बैठना लेकिन मैं मजबूर था वो मुझे कुछ करने भी नही देती थी .....
मेरे पिता की दी हुई जमीन पर बना इंटर कॉलेज आज मुझे एक्स्ट्रा क्लास देने में भी आनाकनी करने लगा ....ये दुनिया हाथी का हिलोरा है ..यहाँ जिन्दे की लाश के कोयले में भुट्टे भूने जाते हैं ...और मरे की मिट्टी में खड़े होकर पेशाब किया जाता है ....
लेकिन हर तरफ से मिलती घोर मानसिक यातना ने मुझे तोड़ दिया ...रश्मि नाथ डाकिया ने सन्डे के सन्डे गणित पढ़ाने की बात बोली और सन्डे के सन्डे उसने हमसे कच्छे -बंडी धुलवाकर ठिठोली की ....
दरअसल वो खुद साला गणित में वक्त से पहले निपटा हुआ डाक टिकट था ...और दसवीं आर्ट्स से करके मृतक कोटे से अपने बाप की जगह छप गया ......
मुहल्ले के हर गणित हलाहल की कुंडी हिला ली लेकिन कोई माई का लाल फ्री में चार से दो घटाने को तैयार नही ....सबको गुणा पसन्द था या जोड़ ...
और माँ जोड़-जोड़ के घर का दाल चावल बड़ी मुश्किल से चला रही थी .....
हाकिम ..हथौड़ा ...पंडा ..फोड़ा ..मुल्ला ..निजामी सबने हाथ खड़े कर दिये ....और भय उछाला कि प्राइवेट से भी कभी कोई पास हुआ है ....
जिंदगी अब तक छिछोर पंथी में चल रही थी ...लेकिन अब शरीर में बदलाव होने लगे थे ... कस्तूरी पांडेय की लौंडिया से दिल लग गया ....
एक तो गणित पहले ही मुझे निपटाने को तैयार थी ऊपर से ये घना प्रेम ....हम स्वीटी का जाप शुरू कर दिये ...पूरे गुलफाम बन गये और बोर्ड परीक्षा के निकट पहुँचते पाँच महीने मुझे डराने लगे ....
माँ को लगता मैं दिनभर घर में बैठकर बाप की आत्मा को गणित के सवालों से शांत करता हूँ लेकिन उसे नही पता था ...कि मैं किस निरानबे के फेर में फँसता जा रहा हूँ ।।।।
माँ को पता चल ही गया ...और उसने मेरे जवान होते शरीर को स्वीटी की खिड़की के नीचे चप्पलों से सेंक दिया ...प्रेम का अंत उस दिन हो गया लेकिन इतनी बेइज्जती ने मेरे हृदय में बगावत पनपा दी ...
प्रेम सरहदें नही देखता ...अपना ..पराया ..उम्र ..धर्म ..रिश्ते सब खत्म कर देता है ...सोच लिया माँ ने हमारी मुहब्बत के आगे हमें धोया हम शहर के किसी होटल के बर्तन धोकर अपना पेट पाल लेंगे लेकिन अब वापस मनकपुर में कदम न धरेंगे ...
प्लान तैयार था रात के 3 बजे उड़ेंगे घर से ...4 की बस पकड़ेंगे और फिर शहर -
लेकिन जवानी की आँख कब टाइम पर खुली है ...ब्रह्मूर्त पर जब मन्दिर की घण्टी बजी मैंने तुरन्त नेकर के ऊपर पतलून पहनी और चप्पल हाथ पर लेकर घर छोड़ने को कदम आगे बढ़ाया - और तभी -
" देखो ..शांति ..पंडित जी बैकुंठ की यात्रा पर निकल गये ...और लौंडा तुम्हारा नरक बना रिया है जीवन तुम्हारा ...अब भी युवती लगती हो ..हम संरक्षण देंगे तुम्हे ..बस मान जाओ ...स्वीटी को भी माँ मिल जाएगी और हमको तुम "
घूँसे पिचका लिए ..कस्तूरी पांडेय का मुँह भेड़ने को -लेकिन माँ का जवाब अभी वांछित था -
" देखो कस्तूरी ! भाई मानते हैं हम तुम्हे ...आज कह दिए आगे कहे तो जिंदा लपट लगा देंगे तुम्हारे ऊपर ...माना पति नही है हमारा ...बेटा नकारा और आवारा है ...लेकिन हम खुद्दार हैं ..जब तक जीयेंगे भगवान से पहले अपने पति के नाम की ही माला जपेंगे "
माँ की बात सुन दीदे भीग गये ...और उठा लिया ईंटा हाथ में और 30 डिग्री के न्यून कोण से कस्तूरी पांडेय की ओर फेंका लेकिन गणित कमजोर थी यहाँ 45 डिग्री लगनी थी उसका सर फोड़ने को ...
कस्तूरी बच गया और दौड़ गया ...लेकिन मैं गिर गया माँ के पैरों में ...और उसके श्री चरण अपने अश्रु से धोकर ...यज्ञोपवीत जनेऊ हाथ में लेकर सौगंध खाई -
" माँ अब जिंदगी को गणित बना लेंगे ...गणित के फेर से आगे निकले तो आपका श्राप भस्म करे ... ढाई महीने हैं माँ ...ऐसा गणित को छकायेंगे कि सीधे बाबूजी से स्वर्ग में जाकर सहायता माँगेगी ...एक बार विश्वास कीजिये माँ ...अब या गणित जीतेगी या हम ....हमें आपपर गर्व है माँ ...अब आपकी सौगंध माँ ..सर झुकने नही देंगे आपका "
माँ सजल हो गई ...नेत्र अश्रु बाढ़ का रूप लेने लगे ...लेकिन तभी नजर स्वीटी की खिड़की पर गई ...
" अबे बन्द कर बे ! और फिरने मत दियो अपने बाप को हमारे पास से ...साला खोपड़े का आयतन और घनत्व बदल देंगे "
वहाँ खिड़की बन्द हुई और यहाँ बुद्धि के कपाट खुले ... लेकिन हेल्प के बिना गणित का टोटा कैसे पार होगा ...मुसीबत और प्रगाढ़ हुई ...क्यूँकि अब गणित नही और भी विषय मुझे देखकर आँख चमका रहे थे .....
लेकिन आरम्भ करना था ...प्रातः काल से 12 बज गये लेकिन गणित का एक सवाल भी हल नही हुआ ....हिम्मत टूटने लगी ...और इसी तरह शाम ढल गई .....
आज रोटी खाई ...और मीठी नींद आई क्यूँकि आज जीवन मे श्रम था ...लेकिन फिर न जाने क्या हुआ कि पिताजी स्वप्न में चले आये -
" बेटा ! आज तुमपर गर्व हो रहा है ... सुनो ! भगवान उसी की मदद करता है ..सरस्वती उसी की वाणी और बुद्धि का कौशल बनती है जो नित श्रम को अपना कर्म बना लेता है ... श्रम करो बेटा ...क्यूँकि श्रम में कोई शर्म नही ...निद्रा सदैव तामसिकता को जन्म देती है ...सूर्य कभी नही सोता ...पवन कभी नही थकती ...उठो और श्रम करो ...प्रारम्भ में असफलता तुम्हारा मार्ग रोकेगी ...परन्तु भयभीत मत होना ..दृढ़ और अडिगता से अपनी असफलता में सफलता का चयन करना ...खोलो मेरा बक्सा और देखो गणित के समस्त ग्रन्थ उसमें समाहित है ...उनकी सहायता लो और भेद डालो अभेद को ...मुझे मुक्ति दो और अपनी माँ की शक्ति बनो "
कर्रा करंट लगा बॉडी में और फिर मैंने तत्काल उठकर बाबूजी का बक्सा खोला और मुझे मिला वो जंतर जिसने ऐसा चमत्कार किया कि गणित अब मेरी प्रतिद्वंद्वी नही ...अब मेरी मित्र बन गई ...
रिजल्ट आऊट हुआ ...और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होकर ..मैंने कस्तूरी पांडेय के घर के नीचे शर्ट खोलकर पुंगा नाच किया ... मुझे नाचता देख मेरी माँ की खिलखिलाहट थमने का नाम ही नही ले रही थी ....
और सौगंध इसी मुस्कुराहट की ...कि इसे सदैव के लिए स्थाई कर दूँगा ...आज बाबूजी की आत्मा को शांति मिली होगी लेकिन मुझे वो लक्ष्य और पथ मिल गया था जिसपर चलकर मुझे अपना एक नया सूरज उगाना था ...
Written by Junaid Pathan
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