ब्रह्मांड में तत्वो का निर्माण और हमारा बनना
प्राचीन समय मे मानव शरीर को पंच तत्व -भूमि, गगन, वायु, अग्नि और जल से निर्मित माना जाता था। लेकिन आज हम जानते है कि ये पंचतत्व भी शुद्ध तत्व नही है, और अन्य तत्वों से मिलकर बने है। तो फिर मानव शरीर के लिये आवश्यक तत्व कौनसे है? और उन तत्वो का निर्माण कैसे हुआ है?
तत्व (या रासायनिक तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं।
मानव शरीर का लगभग 99% भाग मुख्यतः छह तत्वो से बना है: आक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कैल्सियम तथा फास्फोरस इसके अलावा लगभग 0.85% भाग अन्य पांच तत्वो से बना है जैसे पोटैशियम, सल्फर, सोडियम, क्लोरीन तथा मैग्नेशियम है।
इसके अतिरिक्त एक दर्जन तत्व है जो जीवन के लिये आवश्यक माने जाते है या अच्छे स्वास्थ्य के लिये उत्तरदायी होते है, जिसमे बोरान, क्रोमियम,कोबाल्ट, कापर, फ़्लोरीन,आयोडीन, लोहा,मैग्नीज, मोलीब्डेनम, सेलेनियम, सिलिकान, टिन, वेनाडियम और जस्ता का समावेश है।
अगर हम सब ब्रह्मांड के तत्वो से मिलकर बने है ब्रह्माण्ड के जन्म के पश्चात जीवन के लिये आवश्यक तत्वो का निर्माण कैसे हुआ ?
हम सब जानते है। ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ। इसी को महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं।, जिसके अनुसार लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई “सिंगुलरैटी” के रूप में था। तब समय और अंतरिक्ष (space-time) जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी।
बिगबैंग थ्योरी के अनुसार लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व इस महाविस्फोट में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सर्जन हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट के मात्र 1.43 सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं।
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भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। 1.43 वें सेकेंड में ब्रह्मांड 1034 गुणा फैल चुका था और क्वार्क, लैप्टान और फोटोन का गर्म द्रव्य बन चुका था। 1.4 सेकेंड पर क्वार्क मिलकर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाने लगे, और ब्रह्मांड अब कुछ ठंडा हो चुका था। हाइड्रोजन, हिलियम आदि के अस्तित्व का आरंभ होने लगा था। लेकिन महाविस्फोट ने केवल हाइड्रोजन तथा हिलियम जैसे हल्के तत्वों का ही निर्माण किया था, अन्य तत्वों का निर्माण कैसे हुआ ?
अपनी जिंदगी के अधिकतर भाग मे तारे हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया के द्वारा उर्जा उत्पन्न करते है। इस प्रक्रिया मे दो हाइड्रोजन के परमाणु हीलियम का एक परमाणु निर्मित करते है। उर्जा का निर्माण का कारण है कि हीलियम के परमाणु का द्रव्यमान दो हाइड्रोजन के परमाणु के कुल द्रव्यमान से थोड़ा सा कम होता है। दोनो द्रव्यमानो मे यह अंतर उर्जा मे परिवर्तित हो जाता है। हाइड्रोजन बम भी इसी प्रक्रिया का प्रयोग करते है।
सूर्य के द्रव्यमान से नौ गुणा से ज्यादा भारी तारे हीलियम संलयन(Fusion) की प्रक्रिया के बाद लाल महादानव बन जाते है। हीलियम खत्म होने के बाद ये तारे हीलियम से भारी तत्वों का संलयन करते है। तारो का केन्द्र संकुचित होकर कार्बन का संलयन प्रारंभ करता है, इसके पश्चात नियान संलयन, आक्सीजन संलयन और सिलिकान संलयन होता है।
तारे के जीवन के अंत में संलयन प्याज की तरह परतों पर होता है। हर परत पर एक तत्व का संलयन होता है। सबसे बाहरी सतह पर हाइड्रोजन, उसके नीचे हीलियम और आगे के भारी तत्व। अंत में तारा लोहे का संलयन प्रारम्भ करता है। लोहे के नाभिक अन्य तत्वों की तुलना मे ज्यादा मजबूत रूप से बंधे होते है।
लोहे के नाभिकों के संलयन से ऊर्जा नहीं निकलती है इसके प्रक्रिया ऊर्जा लेती है। लोहे के निर्माण के पश्चात प्रक्रिया थम जाती है, पुराने विशालकाय तारों के केन्द्र में लोहे का बड़ी सी गुठली बन जाती है।
इस तरह हम देखते है कि हीलियम, लीथियम, कार्बन, नियान, आक्सीजन, सिलीकान और लोहे का निर्माण होता है। लेकिन तारो के अंतर्भाग मे चलने वाली यह नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया लोहे से भारी तत्वो का निर्माण नही कर सकते है। तो आप सोच रहे होंगे वाकी की तत्वो का निर्माण कैसे हुआ है तो इसके आगे की कहानी जानते है।
तारो की मृत्यु उनके द्रव्यमान के अनुसार भिन्न भिन्न तरह से होती है। एक सामान्य द्रव्यमान का तारा अपनी बाहरी परतों का झाड़ कर एक “ग्रहीय निहारिका(Planetary nebula)” में परिवर्तित हो जाता है। बचा हुआ तारा यदि सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुणा से कम हो तो वह श्वेत वामन तारा बन जाता है जिसका आकार पृथ्वी के बराबर होता है जो धीरे धीरे मंद होते हुये काले वामन तारे के रूप
में मृत हो जाता है।
सूर्य के द्रव्यमान से 1.4 गुणा से ज्यादा भारी तारे होते है वे अपने द्रव्यमान को नियंत्रित नहीं कर पाते है। इनका केन्द्र अचानक संकुचित हो जाता है। इस अचानक संकुचन से एक महा विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहते है।
सुपरनोवा इतने चमकदार होते है कि कभी कभी इन्हें दिन मे भी देखा गया है। सुपरनोवा विस्फोट मे फेंके गये पदार्थ से निहारिका बनती है। कर्क निहारिका इसका उदाहरण है। बचा हुआ तारा न्युट्रान तारा बन जाता है। ये कुछ न्युट्रान तारे पल्सर तारे होते है। यदि बचे हुये तारे का द्रव्यमान 4 सूर्य के द्रव्यमान से ज्यादा हो तो वह एक श्याम विवर(Black Hole) मे बदल जाता है।
सुपरनोवा अपनी चरमसीमा पर होता है, वह कभी-कभी कुछ ही हफ़्तों या महीनो में इतनी उर्जा प्रसारित कर सकता है जितनी की हमारा सूरज अपने अरबों साल के जीवनकाल में करेगा। इस महाविस्फोट के दौरान उष्मा और दबाव इतना ज्यादा होता है कि लोहे से भारी सभी तत्वो का निर्माण इन्ही सुपरनोवा भट्टियों मे हुआ है। हमारा अपना सूर्य और सौर मण्डल के सभी ग्रह किसी सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात बचे हुये पदार्थ से निर्मित है।
इस तरह से हम देखते है कि ब्रह्माण्ड मे हल्के तत्वों की अधिकता है, जैसे जैसे तत्वों का भार बढ़ते जाता है।उनकी उपलब्धता कम होते जाती है क्योंकि उनकी निर्माण प्रक्रिया उतनी ही कठिन होती जाती है।
इस तरह से हम कह सकते है। किसी प्राचीन तारे की मृत्यु ने हमे जीवन दिया है।






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