स्पेस क्या है?
ये हमारा ब्रह्माण्ड असल में क्या है?
स्पेस को आम बोलचाल की भाषा में हम खाली स्थान की तरह जानते हैं। यानी जहाँ कुछ नहीं है वहाँ स्पेस है। स्पेस ही ब्रह्मांड में एक ऐसी चीज है जो कि हर जगह है। जहाँ कुछ नहीं है वहाँ भी और जहाँ कुछ है वहाँ भी। पदार्थ के अणुओं में भी ज्यादातर पार्ट स्पेस ही है। नाभिक और इलेक्ट्रान के मध्य के स्थान की तुलना आप ऐसे कर सकते हैं जैसे एक स्टेडियम के मध्य कोई मक्खी। यहाँ मक्खी को नाभिक समझिये और दर्शकदीर्घा इलेक्ट्रान की कक्षा। दोनों के मध्य जो कुछ है वो स्पेस। आखिर ये स्पेस है क्या? क्या ये वास्तव में खाली स्थान है? या कुछ और?
एक मोटिवेशनल कथन आपने शायद सुना हो कि गिलास आधा खाली है या आधा भरा ये सिर्फ नज़रिये का फर्क है। चलिए इसे एक नए लेवल पर लेकर चलते हैं। हम गिलास का सारा पानी निकाल देते हैं। क्या अब ये खाली है? जी नहीं। ये अब भी हवा से भरा हुआ है। अब हम वेक्यूम पम्प से सारी हवा भी निकाल देते हैं। क्या अब ये खाली है? शायद हाँ। या शायद नहीं।
लम्बे समय से स्पेस को खाली स्थान की तरह परिभाषित करते रहे विद्वानों के सामने 18वीं शताब्दी में एक नयी समस्या खड़ी हो गयी जब कुछ वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रकाश तरंग के गुणों को प्रदर्शित करता है। लेकिन वावजूद इसके ये वेक्यूम में ट्रेवल कर सकता है। प्रकाश चूँकि एक तरंग है अतः इसको ट्रेवल करने के लिए कोई माध्यम तो चाहिए और अगर स्पेस कुछ नहीं है तो प्रकाश उसमें ट्रेवल कैसे कर सकता है?
इसे ऐसे समझिये जैसे आप रस्सी के सिरे को पकड़कर ऊपर नीचे हिलाते हैं तो रस्सी में एक तरंग पैदा होती है जो एक सिरे से दुसरे सिरे तक पहुँच जाती है। इस तरंग का माध्यम रस्सी है। इसी तरह किसी तालाब में कंकड़ फेंकने पर जो तरंग पैदा होती है उसका माध्यम पानी है। हम दूर से आती किसी ध्वनि को सुन पाते हैं क्योंकि ध्वनि तरंगें वायु माध्यम में सफ़र कर दूर तक पहुँच जाती हैं।
अगर वायु न हो तो कोई ध्वनि हम तक नहीं पहुँच सकती। यही कारण है कि चन्द्रमा पर लैंड करने वाले अन्तरिक्ष यात्रियों को आपस में बातचीत करने के लिए रेडियो सिग्नल्स का प्रयोग करना पड़ता है, क्योंकि वहाँ हवा नहीं है। तो यदि प्रकाश एक तरंग है और स्पेस खाली स्थान तो फिर वह आखिर किस माध्यम से सफ़र कर रही है?
ये सवाल लम्बे समय तक वैज्ञानिकों के दिमागों को मथता रहा और आखिर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस ब्रह्मांड में स्पेस जैसा कुछ नहीं है। जिसे हम स्पेस समझते हैं वो वास्तव में एक अदृश्य माध्यम है जो सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है जिसे उन्होंने ल्युमिनोफोरस ईथर का नाम दिया।
जो भी पदार्थ हम अपने आस पास देखते हैं, ये पृथ्वी ये सूर्य समेत समस्त खगोलीय पिंड वास्तव में इस ईथर में तैर रहे हैं। इस अवधारणा ने कुछ नए विचारों को जन्म दिया। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण विचार था कि यदि वास्तव में पृथ्वी एक ईथर में तैरते हुए सफर कर रही है तो प्रकाश की गति सभी दिशाओं में एक समान नहीं होनी चाहिए।
ठीक उसी तरह जैसे नदी की धारा के साथ और उसके विरुद्ध तैरने वाले तैराक की गति भिन्न होती है। लेकिन यहाँ एक समस्या थी कि इस विचार को जांचने के लिए एक बेहद उच्च संवेदी उपकरण की जरुरत थी जो प्रकाश की गति के मामूली से अंतर को पकड़ सके, और जो कि उस समय तक मौजूद नहीं था।
19वीं शताब्दी के अंत में अमरीकी वैज्ञानिक अल्बर्ट ए माइकलसन ‘जिन्हें प्रकाश की गति की सफलतापूर्वक गणना करने के लिए नोबेल पुरूस्कार मिल चुका था’ ने अपने साथी वैज्ञानिक एडवर्ड मोरेली के साथ इसे जांचने का बीड़ा उठाया। इस प्रसिद्द प्रयोग को आज हम माइकलसन-मोरेली एक्सपेरिमेंट के नाम से जानते हैं।
जिसमें उन्होंने प्रकाश की किरण को बीम स्प्लिटर के माध्यम से दो अलग अलग दिशाओं में मोड़ दिया। जो कि बाद में दर्पण से टकराकर पुनः संयुक्त होकर एक उपकरण में जाती थीं। यह उपकरण प्रकाश तरगों की ओवरलैपिंग ‘जिसकी कि उनकी गति में भिन्नता के कारण होने की संभावना थी’ होने पर एक ख़ास पैटर्न निर्मित करता था। लेकिन इस प्रयोग को अनेकों बार अनेकों तरीके से दोहराने के बावजूद भी जिस पैटर्न के बनने की सम्भावना जताई जा रही थी वह प्राप्त नहीं हो सका।
और जिसका एक ही मतलब था। प्रकाश तरंगों के माध्यम के रूप में जिस ईथर के होने की कल्पना की जा रही थी वह मौजूद नहीं था। एक बार फिर वैज्ञानिक दोबारा उसी स्थान पर खड़े थे जहाँ से उन्होंने शुरू किया था। स्पेस उससे कहीं ज्यादा रहस्मयी था जितना वह सोच रहे थे।
20वीं सदी की शुरुआत विज्ञान में एक नयी क्रांति लेकर आयी। इस दौरान भौतिक विज्ञान की एक नयी शाखा क्वांटम फिजिक्स का जन्म हुआ जिसमें पदार्थ के मूलभूत कणों का अध्ययन किया जाता था। क्वांटम फिजिक्स की दुनिया इस दुनिया जिसे हम अपने आस पास महसूस करते हैं जो कारण और प्रभाव पर आधारित है से बिल्कुल अलग थी।
1927 में जर्मन भौतिक विज्ञानी वर्नर हाईजनबर्ग ने एक क्रांतिकारी सिद्धांत दिया जिसे हम हाईजनबर्ग अनसरटीनिटी प्रिंसिपल के नाम से जानते हैं। ये सिद्धांत हमें बताता था कि क्वांटम कणों की गति और स्थिति दोनों में से एक के ही बारे में हम परीशुद्धता से जान सकते हैं। यानी यदि किसी कण की गति के बारे में हम जितनी परिशुद्धता से जानते हैं उतनी ही कम परिशुद्धता से हम उसकी स्थिति के बारे में जान पाते हैं।
इसके साथ ही ये सिद्धांत कुछ ऐसा भी कहता था जो कि किसी के भी दिमाग को हैरत में डालने के लिए पर्याप्त था। इसके अनुसार क्वांटम पार्टिकल शून्य से प्रकट और शून्य में गायब हो सकते थे। हाईजनबर्ग का सिद्धांत जिस संभावना को जताता था उसे तकनीकी आधार प्रदान करने का काम एक ब्रिटिश वैज्ञानिक पॉल डिरेक ने किया। उन्होंने एक समीकरण दिया जिसे डिरेक इक्वेशन के नाम से जाना जाता है।
इस समीकरण के आधार पर उन्होंने पहली बार एंटीमेटर के होने की भविष्यवाणी की। एंटीमेटर गुण प्रकृति में बिल्कुल मेटर जैसा ही था लेकिन उसकी प्रतिछाया। जब दोनों मिलते हैं तो दोनों एक दूसरे को नष्ट कर देते हैं और सिर्फ उर्जा बचती है। क्वांटम पार्टिकल्स के शून्य से प्रकट और गायब होने के पीछे यही कारण था। स्पेस को जैसा शांत और निर्जीव समझा जा रहा था ये वैसा नहीं था।
ये जीवंतता से भरपूर था। इसमें चल रहीं हलचलें जिन्हें क्वांटम फ्लेक्चुएशन कहते हैं के कारण पार्टिकल और एंटीपार्टिकल पैदा होते रहते हैं जो तुरंत ही एक दूसरे को नष्ट कर गायब भी हो जाते हैं।
क्वांटम पार्टिकल शून्य से किस प्रकार प्रकट और गायब होते हैं इसे अब समझा जा सकता था। स्पेस जिसे लम्बे समय से खाली स्थान की तरह देखा जा रहा था अब एक रंगमंच बन चुका था जिसे क्वांटम फिजिक्स में फील्ड के नाम से जाना जाता था और जहाँ हर क्षण क्वांटम पार्टिकल्स का नृत्य चल रहा था।
आज हम जानते हैं कि क्वांटम फील्ड में चल रही हलचलों ने ही उस सब को जन्म दिया था जिसे हम अपने आस पास पाते हैं। बिग बैंग इन हलचलों का ही परिणाम था जिसके फलस्वरूप भारी मात्रा में मेटर और एंटीमेटर पैदा हुआ था जिसमें से अधिकाँश मेटर को एंटीमेटर ने नष्ट कर दिया। लेकिन पैदा हुए हर 1 अरब अणुओं में से एक अणु कुछ अज्ञात कारणों की वजह से बच गया।
आज ब्रहमांड में जो कुछ भी मौजूद है वो सब उन बचे हुए अणुओं से ही बना हुआ है। स्पेस के बारे में अभी भी हम बहुत कम जानते हैं। जितना कुछ अभी तक खोजा गया है वो सिर्फ एक शुरुआत है। इंतज़ार कीजिये जब भविष्य की खोजें इस रहस्यमयी चीज की परतों को एक एक कर खोलेंगी।






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