ए सस्पेक्ट


 

" ये बन्दा मुझे शक्ल से ही रेपिस्ट लगता है दिव्या ?" 

" हाँ यार प्रीति..सच बोला तूने ...देखा नही 4 दिन से हमारा पीछा कर रहा है "

आगे एक पुलिस वेन खड़ी थी  उसका चालक जो एक खोंचे से चाय पी रहा था ...दिव्या ने उसके पास जाकर बोला -

" देखिये सर ये आदमी 4 दिन से हमारा पीछा कर रहा है प्लीज सर इसे अरेस्ट करिये ..हमें बहुत डर लग रहा है.... "

पुलिस कांस्टेबल वाहन चालक ने एकदम से चाय का डिस्पोजल कप नीचे रखा ...
" इसकी माँ का ...कोण है दिखाइयो तो ?"

प्रीति ने पलटकर एक व्यक्ति की ओर इशारा किया ...और कांस्टेबल ने उसकी ओर दौड़ लगा दी ...वह व्यक्ति भी दौड़ा और फिर देखते ही देखते ही दौड़म भाग शुरु हो गई ...

कुछ देर में वह सस्पेक्ट व्यक्ति एक गली में प्रवेश कर गया और उसके पीछे कांस्टिबल भी ....कुछ 10 से 15 मिनट बाद कॉन्स्टेबल हाँफते हुए वापस आया और बोला -


" मैडम जी फट के फरीदपुर पोंच गई हरामी की ..कतई पीछे न आवेगा अब ..जो फिर आया तो लम्बर ले लियो मेरा .. और अपणा दे दियो ... सेब करना नही आता .. लियो आप ही कर दो ..जे टच वाला फोण पल्ले न पड़े है मेरे   !" 

प्रीति ने दिव्या को इशारे से नम्बर देने के लिए मना किया ...लेकिन कांस्टिबल तब तक फोन दिव्या को थमा चुका था ...

" मैडम जी हिंदी में नाम लिखियो अपना और जे भी बता दियो .के नाम से सेब करे हो !" 

मुझे दिव्या की अक्ल पर गुस्सा आ रहा था , उसने खाली इस आम सी बात को बर्निंग इश्यू बना दिया ..खाली पब्लिक को गॉशिप का मौका मिल गया और लोग वीडियो भी बनाने लगे !

बात आई गई हो गई ... 3 दिन बाद जब मैं दिव्या के घर गई ...सुबह के 8 बज रहे थे ...मैंने डोर बेल दी दरवाजा खोला दिव्या की मम्मी ने -

" अरे प्रीति बेटा आ गई ... जा उठा उसको अभी तक सोई है वो ..तुम बच्चे रात भर मोबाईल चलाते हो और सुबह फिर देर तक सोते हो ..."


" क्या कहा आंटी ..दिव्या अभी तक सो रही है ..माय गॉड 9 बजे हमें असाइनमेंट सबमिट करना है कॉलेज में "

मैं दौड़ के दिव्या के कमरे में गई ..और जाकर देखा वो सच में सो रही थी ...मैंने झकझोड़ के उसको जगाया ..चार बाते सुनाई और वो फ्रेश होने चली गई ...उसके जाने के बाद जब मैं उसके कमरे में पड़ी किताबों को सलीके से लगाने लगी तभी मेरी नजर खिड़की से नीचे गई ...ओह्ह माय गॉड वही आदमी नीचे खड़ा होकर दिव्या की खिड़की को घूर रहा था ।

कितना घिनौना था वो आदमी ..लम्बी दाढ़ी , गंदे -फटे कपड़े .. सर पर गंदी मटमैली स्पोर्ट्स कैप .. तभी दिव्या पीछे से आकर मुझे पकड़ लेती है .. मैं उससे खुद को छुड़वाने की कोशिश करती हूँ इतनी देर में वो आदमी वहाँ से चला जाता है ।

बात न बड़े इसलिए मैंने दिव्या से कुछ नही कहा.. लेकिन मन मे एक भय दौड़ने लगा ..मेरा रोम -रोम सिहरने लगा ...हम दोनों जब नीचे उतरे ..तो दिव्या की ममा की आवाज आई ...

" अरे दिव्या ..ब्रेकफास्ट तो कर लो ..."

" मैं कॉलेज कैंटीन में कुछ खा लूँगी ममा "

" दिव्या ..तुरन्त नाश्ते की टेबल पर बैठो और तुम भी प्रीति .."

पीछे पलटकर देखा ..दिव्या की दादी हाथ में पूजा की थाली लेकर हमारी ओर ही बढ़ रही थी ...दिव्या भीगी बिल्ली बन गई और मेरा हाथ पकड़कर सीधे डायनिंग टेबल पर ले गई ..

हमने ब्रेकफास्ट किया ...दादी ने मिर्ची लेकर पहले दिव्या की नजर उतारी ..फिर उसे चरणामृत दिया ...माथे पर तिलक लगाया और कहा -

" याद रहे सीधा पैर घर से बाहर निकालना ...और ये रुद्राक्ष का दाना अपने बैग में रख लो "
दिव्या ने वही किया और हम कॉलेज को निकल गये ।

" तो तू अब ये तिलक लगाकर कॉलेज जायेगी ..?"

" क्यों कालेज में तिलक लगाकर जाना बेन है ?"

दिव्या कुछ बोलती इससे पहले ही  हमें पीछे से एक आवाज सुनाई दी ...

पीछे पलटकर देखा एक आदमी खड़ा था ...हम दोनों उसकी बात सुनकर ठिठक गये ।


" मैडम ये हमारे संस्कार हैं , ये हरगिज पिछड़ेपन की पहचान नही बल्कि ये हमारे विश्वास के प्रतीक हैं "

हम दोनों की उसकी बात पर सर हिला दिया और आगे बढ़ गए ।

अब वो आदमी हमें रोज मिलने लगा ..हम पहले सर हिलाकर उसको नमस्ते बोलते और अब तो पूरा हाथ जोड़कर ।

वह व्यक्ति सगा न होकर भी हमें अपना सगा ..या घर का कोई बड़ा लगने लगा ...उसने कभी हमसे जबरदस्ती बात करने की कोशिश नही की और न ही उसने कभी हमें गंदी नजरों से देखा ।

वक्त बीत रहा था , जहाँ हमें ये जेंटलमैन मिला वहीं अब उस सस्पेक्ट गंदे से आदमी का कोई अता-पता नही था ... हम उस जेंटलमैन से क्लोज होने लगे ..हमें उसमें अब अपने बड़े भाई की छवि दिखने लगी ..वो हमें जब भी मिलता बहुत अच्छी बातें बताता ... हम उसके साथ खुद को सेफ फील करते ....
रिश्ता विश्वास का रूप लेने लगा तो फोन नम्बर भी एक्सचेंज हो गये ..कभी -कभार वो व्यक्ति जिनका नाम उमेश सोहार था हमें फोन करता और हम भी उन्हें याद कर लेते ...

हमने उस आदमी का परिचय अपने परिवार से भी करवाया ..और उसका हमारे घर आना जाना भी हो गया ...उमेश भैय्या एक टेक्सटाइल मिल में काम करते थे ....

उस दिन मेरा यानि प्रीति का जन्मदिवस था ...सेलिब्रेशन मेरे घर में था ...दिव्या और मेरे सारे दोस्त ऑलरेडी शाम 5 बजे मेरे घर आ गये थे..लेकिन हम सब केक काटने के लिए उमेश भैय्या का वेट कर रहे थे ।

तभी उनका फोन आया कि उन्हें कम्पनी में कुछ और देर रुकना पड़ेगा वो हमें बाद में ज्वाइन कर लेंगे । तभी डोर बेल बजी और मैंने दौड़कर डोर खोला ।


पड़ोस के प्रदीप अंकल और उनकी वाइफ थे मैंने उनका वेलकम किया जैसे ही वो घर मे दाखिल हुए मुझे वही मनहूस गंदा सा आदमी अपने घर के बाहर दिखाई दिया । मैं जड़ हो गई ..और वो एकदम से मेरी नजर से ओझल हो गया ।

रात के 10 बजे उमेश भैय्या एक प्रेजेंट के साथ इंट्री करते हैं ।

" वाह भैय्या वाह !अब आये हो जब पार्टी खत्म हो गई ...सारे मेहमान चले गए... "

" सॉरी प्रीति एक अर्जेंट डिलीवरी करनी थी .."

मैंने कुछ देर मुँह फुलाया फिर हम सबने साथ में मिलकर खाना खाया ...तभी दिव्या के घर से फोन आया ...

" ओके प्रीति मैं टैक्सी पकड़कर निकलती हूँ यार बहुत लेट हो गई है ..."

पापा ने उसे बाईक से छोड़ने को बोला तो वो नही मानी ! तभी खाते-खाते उमेश भैय्या बोल पड़े ।
"दिव्या मैं कम्पनी की कार लेकर आया हूँ..मैं तुम्हे छोड़ दूँगा "

दिव्या आनाकानी करने लगी तभी अचानक से उस आदमी का चेहरा याद आया ....और मैंने खड़ी होकर दिव्या की बाँह पकड़ ली -

" तू जाएगी तो उमेश भैया के साथ समझी अब बैठ जा "

कुछ देर बाद हमने उमेश भैया और दिव्या को बाय कहा ...और उमेश भैया ने कार स्टार्ट की ..दिव्या का घर बीस मिनट की दूरी पर था ...लेकिन आधे घण्टे बाद जब मैं किचन में प्लेट्स धो रही थी उसकी मम्मी का फोन आया -

" अरे प्रीति ! दिव्या को भेजो बेटा ..और हाँ अपने पापा से कहना उसे छोड़ दे ..दिव्या के पापा आज आउट ऑफ सिटी हैं वरना वो खुद उसे लेने आ जाते "

" प..पररर ..पर आंटी वो तो आधे घण्टे पहले उमेश भैया के साथ निकल चुकी है ...ए..ए.. एक मिनट आंटी मैं दिव्या को फोन करके पूछती हूँ वो कहाँ हैं "

" दिव्या का फोन नही लग रहा है प्रीति ...प्लीज बेटा उमेश को फोन करो मेरा दिल घबरा रहा है "
उमेश भैया का भी फोन नही लग रहा था ...हे भगवान क्या हुआ होगा यही सोचकर मैंने पापा -मम्मी को सारी बात बता दी ...

सब परेशान हो गये ..पापा बाईक लेकर खोज पर निकल गये और मैं लगातार उमेश भैया और दिव्या को फोन लगाती रही ...

1 घण्टा बीत गया लेकिन दोनों का कोई अता-पता नही था ..इतने में दिव्या की मम्मी और दादी भी हमारे घर आ गई ... उसकी दादी कड़ककर मेरा पापा से बोली -

" सुंदर ! मेरी पोती तुम्हारी भी बेटी थी तुमने कैसे उसको किसी अजनबी आदमी के साथ भेज दिया जबकि आज तक उस आदमी ने हमें न कभी अपने परिवार से मिलाया न कभी हमने पता किया कि वो जो बोल रहा है वो सच है "

सच कह रही थी दादी.. हमारे पास तो उमेश भैया की कोई फोटो भी नही है ...सिर्फ एक फोन नम्बर के अलावा हम उसके बारे में कुछ नही जानते ...पापा टैक्सी से दिव्या की मम्मी को लेकर पुलिस स्टेशन चले गये और मैं सिसकते -सिसकते कड़ियाँ जोड़ने लगी 

" कहीं वो गंदा सा आदमी उमेश तो नही था जो दाढ़ी -मूंछें लगाकर  हमें धोखा दे रहा था ..कहीं उमेश उससे मिला हुआ तो नही है ...?"

तभी डोर बेल बजी और मैंने दरवाजा खोला ...सामने दिव्या खड़ी थी ..मैं उसे देखकर एकदम से हक्की-बक्की रह गई ...

मैं उसके गले लग गई ...उसके कपड़े कुछ फटे थे ...उसके गाल पर थप्पड़ों के निशान थे ...दिव्या की मम्मी और मैं , दिव्या का  हाथ पकड़कर अंदर लाये और फिर मेरे पापा के साथ एक पुलिस इंस्पेक्टर भी अंदर आये ।

" मैं रुद्र प्रताप सिंह हूँ ...इन्सपेक्टर निहारगंज .. मैं ही वो सस्पेक्ट हूँ यंग गर्ल्स जो भेष बदलकर आपका पीछा करता था ..क्यूँकि मुझे शहर में बढ़ती रेप की घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी मिली थी ...मैं कई दिनों से आपके कॉलेज और कॉलेज की सड़क पर अपनी गश्त दे रहा था ..क्यूँकि पिछले दोनों रेप के केस आपके कॉलेज के ही थे ...और ऑब्जर्व कर रहा था कि कौन है वो व्यक्ति जो इस रेप की दर्दनाक घटनाओं को अंजाम दे रहा था ..कई दिनों से अपनी गश्त में मैंने पाया कि कोई आदमी तुम दोनों लड़कियों को बड़ी बारीकी से फॉलो कर रहा है और खासतौर से उसका इंटरेस्ट दिव्या पर है ..

आप लोग समझते थे कि मैं आपका पीछा कर रहा हूँ लेकिन दरअसल मैं आपके पीछा करने वाले का पीछा कर रहा था ... जिसे तुम उमेश सोहार के नाम से जानते हो दरअसल इसका असली नाम पता करना अभी हमारी ड्यूटी है ...मैं इस आदमी का पीछा करते-करते इतना तो समझ गया था कि ये आदमी जरूर कुछ बड़ा करेगा ..और तुम दोनों लड़कियों ने अपनी मूर्खता से इस रेपिस्ट को क्या बखूब मौका भी दिया और बिना कोई खास जान-पहचान के उसकी बातों में आकर उसे अपना  भाई बना लिया ...

और ऐसे ही विश्वास और मान्यताएं इन नीच कपटीयों को मौका देती है ...रेपिस्ट बहुत दूर का नही होता ..वही होता है जिसपर आपको या तो विश्वास होता है या फिर वो जो आपका बड़ी चालाकी से पीछा करके घात लगाता है ...लेकिन ये रेपिस्ट कोई रिश्ता नही मानते ..ये मौके की तलाश में था ..ये इसलिये जान-बूझकर तुम्हारी बर्थ डे पार्टी में नही आया क्यूँकि इसमें ये एक्सपोज हो जाता और किसी भी फोटो शूट या वीडियो में इसका चेहरा पहचान में आ जाता ।

जब ये दिव्या  को कार में बैठाकर आगे बढ़ा मैंने इसका पीछा किया ...ये सीधे गाड़ी को जंगल के कच्चे रास्ते की ओर ले गया ..हमें पता नही चलता लेकिन तभी दिव्या की चीख ने हमें उस जगह पहुँचा दिया जहाँ ये उसके साथ .....मैंने उसके दोनों पैरों में गोली मार दी है ..और अभी वो अस्पताल में हैं ...हम उससे सब कुछ उगलवा लेंगे ...लेकिन याद रखो हम रेप की घटनाओं को तभी रोक सकते हैं जब हम अपना अंधा विश्वास और लापरवाही का त्याग करेंगे वरना फिर हाथ मलने के अलावा और कोई मौका नही रह जाता ...अब तुम सब आराम करो गुड नाईट "


इंस्पेक्टर साहब चले गये लेकिन हमें जिंदगी का वो कड़वा सच सौंप गए जो हमें और हर लड़की को याद रखना जरूरी है ...सिर्फ हमें ही नही बल्कि हर बेटी के पिता को ।

आज सीख मिल गई कि किसी  की कही गई बात अंतिम सत्य नही होती और किसी पे विश्वास भी अंतिम विश्वास नही होता ।

Written by Junaid Pathan

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